मंगलवार, 29 मई 2012

लोक सेवकों का निंदनीय आचरण


पिछले दिनों मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी कि सरकार के कुछ बड़े नौकरशाह जिनकी सेवा-निवृत्ति हुए अभी बहुत कम समय हुआ है, अपने निवास पर रखी सरकारी स्वामित्व की कीमती वस्तुओं को नहीं लौटा रहे है। इन वस्तुओं में टी.वी., कम्प्यूटर, लैपटॉप, ब्रीफकेस, कीमती पुस्तकें, वैब कैमरा आदि शामिल थे। कार्मिक विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा बहुत तकाजे करने और अपनी प्रतिष्ठा पर सार्वजनिक रूप से आँच आने पर ही इन आला अफसरान ने वे वस्तुयें लौटाई हैं। शायद कुछ महाभाग अभी भी आनाकानी कर रहे हैं। सेवाकाल में सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग तो सर्वविदित है, जिनमें बेरहमी से कारों में पैट्रोल फूँकना तो उनके परिजनों तक का मूलभूत अधिकार हो गया है। यहाँ तक कि अपने किसी साथी आला अफसर के माता या पिता का देहावसान हो जाय तो उसके दाह संस्कार में शरीक होने के लिए श्मशान में भी सरकारी गाड़ियों की भीड़ ही नजर आयेगी।

‘माले मुफ्त दिले बेरहम‘ की उक्ति को चरितार्थ करने वाली यह परम्परा नई नहीं है। पुराने मुलाजिम जो जीवित हैं, अभी भी याद करते हैं कि एक विशेष कालखंड में राजभवन से पुरानी बेशकीमती पेन्टिंग्स और एंटीक्स किस प्रकार गायब हुए थे। अजमेर स्थित एक मुख्य सचिव स्तर के समकक्ष अधिकारी की सेवा-निवृत्ति पर उनके शानदार ढंग से सुसज्जित बंगले से मूल्यवान् पलंगों के स्थान पर घटिया किस्म के पलंग जो खटियाओं से बेहतर नहीं थे, रख दिये गये, इसके चर्चे दफ्तर की चार दीवारी से बाहर भी कम नहीं हुए थे।

यह कैसी विचित्र बात है कि लगभग हर आला अफसर सरकारी खर्चे पर ही अखबार मंगाता है, पर उसकी रद्दी के विक्रय से जो कुछ प्राप्त होता है, वह सरकारी खजाने में जमा नहीं होता। फिल्म और फैशन मैगजीन्स तक का आनन्द सरकारी खर्च पर ही उठाया जाता है।

सेवा-निवृत्ति पर सरकारी वस्तुओं को न लौटाने की आदत का आरोप मात्र आला अफसरों पर लगाना उचित नहीं है। अन्य सेवाओं के अधिकारी भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। आठ-दस हजार रूपये के मूल्य तक की तो अनेक वस्तुएं विभागाध्यक्ष के विशेषाधिकार से राइट ऑफ ही कराली जाती हैं। विचारणीय प्रश्न यह है कि जब बेईमानी और दुराचरण इस गिरी हुई सीमा तक है, तो उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार को पूर्ण रूप से रोकना तो चट्टानों पर गुलाब खिलाने की कल्पना करना ही है। फिर भी यह सन्तोष का विषय है कि भ्रष्टाचार-उन्मूलन की दिशा में इन दिनों केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही स्तरों पर प्रयत्न किये जा रहे हैं।

आशा की जानी चाहिए कि नई पीढ़ी के जो युवा अखिल भारतीय प्रशासनिक और राज्य प्रशासनिक सेवाओं तथा इतर उच्च स्तरीय सेवाओं में आ रहे हैं, वे ईमानदार और निष्ठावान लोकसेवक के रूप में ऐसे उदाहरण बनेंगे जो अन्यों के लिए अनुकरणीय हो।

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