शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

बुजुर्गों पर बढ़ते अत्याचारः निवारण कैसे हो ?


हमारे जन-जीवन में आदर्श और आचरण के बीच जितनी गहरी खाई है, उसका शब्दों में बखान करना मुश्किल है। हम लोग तरह-तरह के दिवस मनाते हैं। प्रेम दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, पर्यावरण दिवस और न जाने क्या-क्या दिवस। इन दिवसों के पीछे भावनात्मक प्रेरणा और शक्ति कितनी है, यह तो हम व्यावहारिक रूप से जानते ही हैं। इन दिवसों पर छपने और बँटने वाले कार्डों का भी करोड़ों का कारोबार होता है, जिसका तात्पर्य प्रकटतः यही है कि हमने मनुष्य के अन्तर्मन की भावनाओं को भी तिजारत में बदल दिया है। मीडिया भी इन दिवसों पर अपना धन्धा करने से नहीं चूकता। फिर भी यह सन्तोष का विषय है कि समय-समय पर हमारे समाचार पत्र सामाजिक सरोकारों के मुद्दों को सुर्खियों में छापते हैं। पितृ दिवस अभी दो दिन पूर्व ही गया है और उससे कुछ दिन पूर्व समाचार पत्रों में हैल्पेज इन्डिया के अध्ययन की एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें कहा गया है कि बुजुर्ग लोग अपनी पुत्र-वधुओं की तुलना में पुत्रों द्वारा अधिक सताये जाते हैं। हैल्पेज इन्डिया बड़ी प्रतिष्ठित समाजसेवी संस्था है और उसके निष्कर्ष विश्वसनीयता के निकट होने चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार 31  फीसदी बुजुर्गों को उनकी बहुएं नहीं, बल्कि उनके बेटे दुःखी करते हैं। बुजुर्गों के उत्पीड़न के लिए केवल 23  फीसदी बहुएं जिम्मेदार हैं, जबकि 57  प्रतिशत बेटे अपने नृशंस व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। हैल्पेज इन्डिया की यह रिपोर्ट 20  शहरों में करीब 6000  बुजुर्गों से साक्षात्कार करके तैयार की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में बुजुर्गों को सताने और परेशान करने के कसूरवार उनकी बहुओं से ज्यादा उनके अपने बेटे हैं। हर शहर में यही ट्रेंड देखा गया, जो हैरान करने वाला था। सर्वे में हर इनकम ग्रुप और एजुकेटेड क्लास के लोगों की राय ली गई। सभी में ट्रेंड एक जैसे दिखाई दिए।

बुजुर्गों के लिए मुश्किल भरे शहरों में भोपाल सबसे आगे है, यहां 77.12  फीसदी बुजुर्ग परेशानी झेलते हैं। सबसे बेहतर स्थिति जयपुर की दिखी, जहां यह आंकड़ा सिर्फ 1.67  फीसदी है। यह मुद्रण की त्रुटि भी हो सकती है।

यदि ऐसा नहीं है तो, जयपुर का यह आँकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि आये दिन माता-पिताओं के उत्पीड़न की जैसी खबरें छपती रहती हैं, उसे दृष्टिगत रखते हुए यह धारणा नितान्त अविश्वसनीय प्रतीत होती है। वैसे भी सैम्पल सर्वे की अपनी सीमाएं होती हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि राज्य में केन्द्र द्वारा पारित माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम-2007  लागू किये जाने और उसके अन्तर्गत नियम बन जाने के बाद इस कानून के तहत बुजुर्ग लोग राहत के लिए आवेदन करने से कतराते हैं, जिसके पीछे उनका यही भय छिपा रहता है कि ऐसा करने से उनके परिवार का अपयश होगा। किन्तु इस तरह की भावना को निर्मूल करने और इस कानून के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार करने की दिशा में सरकार और सोशल एक्टीविस्ट दोनों ही निष्क्रिय प्रतीत होते हैं। चूँकि अभी इस संबंध में जन-मानस में जागरूकता नहीं आई है, जिला मजिस्ट्रेटों के लिए यह अनिवार्य है कि वे उपनियम (2) और (3)  में उल्लिखित कर्तव्यों और शक्तियों का प्रयोग यह सुनिश्चित करने के लिए करें कि अधिनियम के उपबन्धों का उनके जिले में समुचित रूप से क्रियान्वयन किया जा रहा है। जिला मजिस्ट्रेटों के मुख्य कर्तव्य उक्त प्रावधान के अन्तर्गत निम्न प्रकार हैं -

1. यह सुनिश्चित करना कि जिले के वरिष्ठ नागरिकों का जीवन और सम्पत्ति सुरक्षित है और वे सुरक्षा और गरिमा के साथ जीवन-यापन करने में समर्थ है;

2. भरण पोषण के आवेदनों के यथासमय और उचित निपटान और अधिकरणों के आदेशों के निष्पादन को सुनिश्चित करने की दृष्टि से जिले के भरण पोषण अधिकरणों और भरण पोषण अधिकारियों के कार्य का निरीक्षण और मॉनीटर करना;

3. जिले के वृद्धाश्रमों के कार्यकरण का निरीक्षण और मॉनीटर करना ताकि यह सुनिश्चित किया जाये कि वे इन नियमों और राज्य सरकार के अन्य मार्गदर्शक सिद्धान्तों और आदेशों में अधिकथित मानकों के अनुरूप हैं;

4. अधिनियम के उपबंधों और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के कार्यक्रमों के नियमित और व्यापक प्रचार को सुनिश्चित करना;

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सरकार के संबंधित विभाग वरिष्ठ नागरिकों के गरिमापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने के लिए कानून के प्रावधानों की जानकारी समाचार पत्रों और टी.वी. चैनल्स पर डिस्प्ले विज्ञापनों के जरिये घर-घर पहुँचायें और जो वास्तविक हालात हैं उनका सर्वेक्षण भी करायें। गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में बहुत कुछ योगदान कर सकती है। आशा है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जो न केवल मन से बहुत संवेदनशील हैं, अपितु अपने माता-पिता की सेवा के लिए भी बहुत चर्चित रहे हैं, राज्य में बुजुर्गों के बेहतर जीवन के लिए और अधिक कारगर कदम उठायेंगे।

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