शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

धन्यवाद के पात्र हैं राष्ट्रपति महोदय


वैसे तो पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी कुछ सामन्ती परम्पराओं को तोड़ा था। उदाहरणार्थ,  उन्होंने इस सामन्ती प्रचलन को बंद किया था कि राष्ट्रपति को उनके जूते कोई सेवक पहनाए,  चाहे राष्ट्रपति भवन में और चाहे समाधि स्थलों पर श्रद्धांजलि अर्पित करते समय जूते उतारने की ज़रुरत पड़ी हो। सेवकों द्वारा जूते पहनाने और जूते उतारने में उन्होंने सेवकों की सहायता का सर्वथा परित्याग कर दिया था। उसी प्रकार राष्ट्रपति भवन में इतना बड़ा अमला होते हुए भी वे स्वयं कम्प्यूटर पर बैठ कर इण्टरनेट के ज़रिए वैज्ञानिक गतिविधियों का लेखा-जोखा लेते रहते थे। उनकी यह जीवन शैली सब ओर सराही गई थी,  किन्तु हाल ही में पदासीन हुए राष्ट्रपति महोदय प्रणब मुखर्जी ने तो औपनिवेशिक शब्दावली के बहिष्कार की घोषणा करके निश्चित रूप से एक ऐसा स्तुत्य कार्य किया है,  जिसकी ओर किसी का ध्यान अब तक नहीं गया था। उन्होंने पहले तो अपने वक्तव्य में इस बात की निन्दा करते हुए कि ‘’हिज़ एक्सिलेन्सी’  और ‘’महामहिम’  जैसे शब्द हमारी मानसिक दासता के प्रतीक हैं और उनके लिए इन शब्दों का प्रयोग न किया जाए। अधिक से अधिक जहॉं नामोल्लेख ज़रूरी हो,  उन्हें ‘श्री प्रणब मुखर्जी ही कहा जाए। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति प्रकट की थी कि राजकीय और गैर राजकीय समारोहों में जहॉं वे पधारें वहॉं उनके लिए मंच पर ऊॅंची कुर्सी न लगाई जाए। अब तो राष्ट्रपति भवन से भी औपचारिक विज्ञप्ति जारी कर दी गई है। उसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि देशवासियों द्वारा उन्हें किसी भी प्रसंग में ‘’हिज़ एक्सिलेन्सी’  और ‘’महामहिम’  जैसे विशेषणों से अलंकृत न किया जाए। इस विज्ञप्ति में इतनी-सी व्यवस्था अवश्य की गई है कि विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ जुड़े आयोजनों और कार्यक्रमों में अन्तरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल का पालन किया जाता रहेगा।

आश्चर्य की बात यह है कि जब राष्ट्रपति जी ने ‘’हिज़ एक्सिलेन्सी’  और ‘’महामहिम’  जैसे शब्दों का बहिष्कार करने की बात अपने वक्तव्य में कही थी,  उसके बाद भी देश के किसी भाग के राज्यपाल ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी और न ही ऐसा कोई संकेत किया था कि वे भी भारी भरकम उपनिवेशवादी विशेषण अपने लिए प्रयुक्त किए जाने का मोह त्याग देंगे।

   किन्तु, अब जबकि राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति जी के लिए उन विशेषणों का उपयोग न करने की विज्ञप्ति जारी की जा चुकी है,  तो राज्यपालों को भी क्या इस प्रकार के निर्देश राष्ट्रपति भवन से जारी किए जाएंगे?  क्योंकि राज्यपाल सीधे वहीं से नियंत्रित होते हैं। यहां तक कि कोई राज्यपाल अपने प्रदेश की राजधानी छोड़ कर अन्यत्र जाता है,  तो उसे राष्ट्रपति भवन को सूचित करना होता है। औपनिवेशिक शब्दावली के अन्तर्गत और ऐसी  कितनी ही संज्ञाओं का प्रयोग प्रचलन में है। मिसाल के तौर पर राज्यपाल लोग जहां रहते हैं उनके निवास स्थल को राज भवन क्यों कहा जाता है, जबकि मुख्य मंत्री जहां रहते हैं,  उसे मुख्य मंत्री निवास के नाम से जाना जाता है। राज्यपाल के रहने के स्थान को भी उसी प्रकार राज्यपाल निवास के नाम से पुकारा जा सकता है। इसी प्रकार राजधानी में और ज़िला मुख्यालयों पर जहां राजन्य व्यक्तियों के निवास होते हैं,  उस क्षेत्र को सब जगह,  यहां तक कि दौसा और बारां जैसे छोटे ज़िलो में भी,  जहां कलेक्टर और ज़िला स्तर के अन्य अधिकारी रहते हैं,  सिविल लाइन्स कहा जाता है और जयपुर की सिविल लाइन्स तो मशहूर है ही। प्रकटतः इस क्षेत्र को सामान्य लोगों की बस्तियों से एक विशिष्ट बस्ती के रूप में पहचान दी गई है,  जो सर्वथा अनुचित है। सिविल लाइन्स के नाम से जो बस्तियां जानी जाती हैं,  उनका नाम किसी ऐसे व्यक्ति के नाम पर भी रखा जा सकता है,  जिनका सार्वजनिक जीवन में असाधारण योगदान रहा हो।

एक और अद्भुत बात यह है कि जब-जब भी विभिन्न आयोजन गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस,  गॉंधी जयन्ती आदि के अवसर पर सरकार द्वारा किए जाते हैं,  तो राज्य का सामान्य प्रशासन विभाग समाचार पत्रों में जनता को जिस भाषा में आमंत्रित करता है,  वह सर्वथा सामन्ती प्रकृति की होती है। हर विज्ञापन इस पंक्ति के साथ ही प्रारम्भ होता है ‘सर्व साधारण को सूचित किया जाता है कि-- प्रकटतः ‘’सर्व साधारण’  जुमले का यह प्रयोग नागरिकों की एक तरह से अवमानना ही है। इन शब्दों के प्रयोग से स्पष्टरूप से यह गंध आती है कि आमंत्रण देने वाले राजसी लोगों की दृष्टि में नगर निवासी अपने मुकाबले में कमतर होते हैं। इस तरह का प्रयोग नितांत अवांछनीय है और अविलम्ब बंद हो जाना चाहिए।

हमारी अदालतों के जो सम्मन समाचार पत्रों में छपते हैं उनमें से अधिकांश की भाषा में उसी पुराने  औपनिवेशिक युग की झलक मिलती है,  जबकि केन्द्र सरकार के विधि मंत्रालय के राज भाषा विभाग ने विशुद्ध हिन्दी में अच्छे-अच्छे मानक प्रारूप उपलब्ध करा दिए हैं।

निष्कर्षतः राष्ट्रपति महोदय को इस बात के लिए हार्दिक धन्यवाद किया जाना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्रपति भवन से ही औपनिवेशिक विशेषणों को विदाई देने की पहल की है।    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें