बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

पटवारी कॉट रेड हैंडेड......


घटना कोई पचपन बरस पहले की है। पांचवे दशक के उत्तरार्द्ध का यह कालखंड उस दौर में था,  जब अंग्रेज़ी के संवाददाता सरकारी सर्किल्स में साहबों की तरह समझे जाते थे। हिन्दी संवाददाताओं और अन्य पत्रकारों को प्रायः अंग्रेज़ी के अखबार नवीसों की तुलना में कमतरी का एहसास कराया जाता था और कुछ अपवादों को छोड़ कर वे स्वयं भी इस कॉम्प्लेक्स से पीड़ित रहते थे। अंग्रेज़ी अखबारों के प्रतिनिधियों में एक मिस्टर राणा थे। वे स्टेट्समैन के विशेष संवाददाता थे, उन दिनों में जब इस अखबार की धाक थी और इसे पढ़ने वाला वर्ग भी समाज का उच्चतर अंग्रेज़ी प्रेमी भद्रलोक होता था। राणा एक बड़ी कार में चलते थे और उनकी दम्भोक्तियां अक्सर चर्चा का विषय रहती थीं। कार में चलने वालों में एक अन्य पत्रकार टाइम्स आव इंडिया के वाई. डी. लोकुरकर थे। वे एक ऐसी नन्ही बेबी फिएट कार में चलते थे,  जिसमें केवल दो लोग ही बैठ सकते थे। तब इस कार की कीमत मात्र 6900 रुपए होती थी। कौतूहलवश मैंने इसकी कीमत की जानकारी स्थानीय डीलर से प्राप्त कर ली थी। अंग्रेज़ी के जिन पत्रकारों के पास कारें नहीं थीं,   उनकी सेवा में राजन्य वर्ग के लोगों की कारें प्रायः उपलब्ध रहती थीं। अंग्रेज़ी अखबारों के इन प्रतिनिधियों का मिज़ाज भी स्वाभाविक रूप से भिन्न-भिन्न था। राणा साहब की यह गर्वोक्ति कि स्टेट्समैन उन्हें इतना भारी भरकम वेतन देता है कि उसके सामने राज्य के मुख्य सचिव का वेतन भी बहुत बौना है, एक प्रकार से उनका तकिया कलाम ही बन गया था।

राणा साहब के इस मिज़ाज की बात छोड़ दें,  तो अन्य पत्रकार एक प्रकार का गांभीर्य अपनी संवाद शैली में ओढ़े रहते थे। उनकी मितभाषिता मेरी अपनी दृष्टि में उनके लोक व्यवहार की व्यूह रचना अधिक प्रतीत होती थी,  चारित्रिक बुनावट का अंग नहीं। यहां यह उल्लेख भी प्रासंगिक होगा कि स्टेट्समैन के जो अन्य संवाददाता डी. डी. भारद्वाज साहब आए वे बड़े गंभीर और सी.वाई. चिन्तामणि जैसे महान् लोगों के साथ कार्यरत रहे उच्चतम पत्रकारी प्रतिमानों का पालन करने वाले व्यक्ति थें। बाद में सेवा निवृत्त हो कर वे यहीं बस गए थे। बहरहाल।

यहां प्रस्तुत रोचक प्रसंग वाई. डी. लोकुरकर साहब से संबंधित है। वे नाटे कद के महाराष्ट्रियन थे। उनका सिर लगभग गंजा था,  किन्तु खुशमिज़ाजी और मराठी नाटककारों की तरह अपने सम्भाषण में गज़ब का गुड ह्यूमर और वक्रोक्ति क्षमता रखते थे। न जाने मेरे प्रति वे किंचित् मोहाविष्ट क्यों हो गए थे, पर जब भी जन सम्पर्क निदेशालय की समाचार शाखा में आते तो मुझसे ज़रूर संवाद करते थे। वे अक्सर पूछते ‘कहिए क्या कोई ठीक-ठाक खबर है?  मैं उन्हें उत्तर देता उसके पहले ही वे हंस कर प्रहार करते-‘क्या खबर होगी। बस यही कि पटवारी कॉट  रेड हैंडेड,   टेकिंग फुल पान एन्ड हाफ बीड़ी। अर्थात् पटवारी एक पान और आधी बीड़ी की रिश्वत  लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। उनकी ऐसी एक नहीं,   अनेक दिलचस्प वक्र व्यंजनाएं होती थीं। पर आधी सदी पहले के उनके रोचक जुमले अब विस्मृतियों के जंगल में खो गए हैं।





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