सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

काव्य प्रतिभा के कुबेर ललित गोस्वामी




गौर वर्ण, मँझला कद, बहुत हल्की मूँछें, पान की पीक से रंगे होठ, धोती, कुर्ते का परिधान, ऐसा ही कुछ बहिरंग व्यक्तित्व था आज गुमनाम हुए ललित गीतों के रचनाकार ललित गोस्वामी का। उन्हें गुजरे हुए लगभग आधी सदी होने को आई। वे कोई नौकरी-चाकरी नहीं करते थे और उनकी औपचारिक शिक्षा भी साधारण ही हुई थी, पर काव्य-प्रतिभा के वे कुबेर ही थे। एक वक्त था जब आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से सुगम संगीत के कार्यक्रमों में उनके नाम की धूम थी। गरीबी उनको विरासत में मिली थी, लेकिन दिल की दौलत से वे भरपूर थे। मेरी उनकी मैत्री कोई सन् 1957 में शुरू हुई और 1962-63 में उनके निधन के साथ ही समाप्त हो गई। यह वह दौर था जब आकाशवाणी के जयपुर केन्द्र पर हम दोनों की जबरदस्त डिमांड बहुतों के लिए ईष्र्या का विषय था। उन दिनों जयपुर आकाशवाणी पर उदयशंकर भट्ट और राज नारायण बिसारिया जैसे सरनाम सर्जक चीफ प्रोड्यूसर और प्रोड्यूसर थे। उदय शंकर जी भट्ट जैसी दिग्गज साहित्यिक हस्ती की ललित जी पर विशेष कृपा थी। उनके साथ ही मैंने पहली बार और आखिरी बार भंग-भवानी की तरंग का अनुभव किया था। भट्ट जी प्रतिदिन भंग पीकर ही शायद रचना-कर्म करते थे। ललित जी को पान खाने के अतिरिक्त कोई व्यसन नहीं था, गो कि वे सूक्ष्म मात्रा में यदा-कदा भंग और मदिरा दोनों का ही आस्वाद कर लेते थे।

ललित गोस्वामी ने मुझे कभी अपना निवास नहीं दिखाया था। हमारा मिलन स्थल प्रायः गवर्नमेन्ट हॉस्टल के सामने एक चाय की दुकान पर ही होता था। जब-तब वे मेरे दफ्तर और घर पर भी आ जाते थे। दरअसल उनका रैन-बसेरा अजमेर रोड़ की एक कच्ची बस्ती में ही था, जिसका पता मुझे कारूणिक स्थिति में बिना दवा-दारू के उनके अकस्मात् निधन पर ही लग सका। जो हालात मैंने देखे, उनसे मेरा कलेजा फटने लगा था। सर्दी के मौसम में ठीक से बिस्तर भी उनके पास नहीं थे। रहने वाले थे तीन- उनके माता-पिता और एक बेरोजगार भाई। बहरहाल।

ललित गोस्वामी के लयात्मक गीतों का एक संकलन प्रसिद्ध प्रकाशक आत्माराम एण्ड सन्स ने ‘मेरे सौ गीत‘ नाम से छापा था, जो काफी चर्चित रहा था। उसी संकलन से एक गज़लनुमा गीत की दो पंक्तियाँ मुझे अभी भी याद हैं। उन्होंने लिखा था -
आज वो सपनों में आये, मुस्कुराकर चल दिये।
जैसे श्यामल घन कहीं, बिजली गिराकर चल दिये।।

गोस्वामी के गीतों का मूल स्वर रूप, रस, रोमान्स का ही था, किन्तु हास्य-व्यंग्य की रचनाएं करने में भी वे सिद्धहस्त थे। जयपुर आकाशवाणी से उनके बंडल कवि के  नाम से प्रसारित धारावाहिक ‘चाय-चालीसा‘ की कुछ पंक्तियाँ मेरे जेहन में अभी भी हैं:-
हीरोइन के हाथ की मिले एक कप चाय।
तो भूमंडल छोड़कर कौन स्वर्ग को जाय?
कौन स्वर्ग को जाय जहाँ होटल ना ढ़ाबा,
बसें देव ही देव और बाबा ही बाबा।

पारसी शैली में लिखित ‘रंगीलाल‘ नाम से प्रसारित उनका एक अन्य हास्य धारावाहिक भी बहुत पॉपूलर हुआ था। उनके अस्वस्थ होने पर इसकी कुछ कड़ियाँ मैंने भी लिखी थी।

उनके मुफलिसी  के दौर में तत्कालीन मुख्य सचिव आदरणीय भगवत सिंह जी मेहता से आज्ञा प्राप्त कर मैंने कुछ विकास-गीत भी उनसे लिखवाये थे, जो स्व. राजेन्द्र शंकर जी भट्ट द्वारा जनसंपर्क निदेशालय से दो-तीन संकलनों के रूप में प्रकाशित हुए थे। पर ऐसी छोटी-मोटी आर्थिक सहायता कितने दिन कारगर होती।

ललित गोस्वामी के निधन को कोई पचास साल के आस-पास हो आये, पर किसी साहित्यिक संस्था ने उन्हें याद नहीं किया। राज्य की साहित्य अकादमी यदि उन पर मरणोपरान्त एक मोनोग्राफ निकाल सके, तो यह उनके प्रति विलम्बित ही सही, उपयुक्त श्रद्धांजली होगी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. कृपया श्री ललित जी की कोई फोटो हो तो वो शेयर करने की कृपा करे, या मेरे व्हाट्सअप नंबर पर देने की कृपा करे 9314510266 अरविन्द भट्ट

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  2. किसी भी सज्जन के पास उनकी पुस्तक मेरे गीत की प्रति हो तो कृपया उसमें से उनकी मुद्रित फोटो को अवश्य भेजें।मेरे नंबर 9414558667 पर भेज दें।फ़ोटो देने वाले का नाम ससम्मान उनकी पुस्तक के नए संस्करण में दिया जाएगा,जो शीघ्र प्रकाश्य है। वसुधाकर गोस्वामी

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