गुरुवार, 10 मई 2012

राजभवन को नई बंगिमा देंगी मारग्रेट अल्वा



आबू रेजीडेन्सी से राज्य की राजधानी जयपुर में राजभवन तक की राजसी यात्रा बड़ी घटनापूर्ण और दिलचस्प रही है। पीछे मुड़कर देखें, तो कुछ अपवादों को छोड़कर राजस्थान के राजभवन को एक से बढ़कर एक ख्यातनाम और कद्दावर विभूतियों ने विशिष्ट गरिमा प्रदान की है। सरदार गुरूमुख निहाल सिंह, डॉ  सम्पूर्णानन्द, डी.पी. चट्टोपाध्याय और ओ.पी. मेहरा जैसे कुछ नाम तो लम्बा समय गुजर जाने के बाद भी लोगों की जुबान पर हैं।

 राजस्थान के राजभवन को ही यह ऐतिहासिक महत्व मिला कि वहाँ कार्यशील पहली महिला राज्यपाल प्रतिभा पाटील ने भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया। उनके बाद दूसरी महिला राज्यपाल प्रभा राव बनीं, पर दुर्भाग्य से वे बहुत जल्दी ही स्मृति शेष हो गईं। भारत के पूर्व विदेश सचिव रहे डॉ  एस. के. सिंह भी राजस्थान के राज्यपाल के रूप में बहुत अल्प समय तक ही अपनी सेवाएं देकर गोलोकवासी हो गये। उनके निधन के बाद तकनीकी दृष्टि से राजस्थान में राज्यपाल का पद लम्बे समय तक रिक्त ही रहा और पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल यहाँ के भी कार्यवाहक राज्यपाल बने रहे।

अन्ततः अब वह शुभ मुहूर्त आया है, जब आज से दो दिन बाद देश की विख्यात् राजनेता, सांसद और प्रखर बुद्धिजीवी महिला मारग्रेट अल्वा राजस्थान की तीसरी महिला राज्यपाल होंगी। वे इससे पूर्व उत्तराखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं।

मारग्रेट अल्वा की उपलब्धियों की यदि इनवैन्ट्री तैयार की जाय, तो वह कई पृष्ठ भर लेगी। कांग्रेस पार्टी की जनरल सैक्रेट्री रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पाँच पारियाँ (1974-2004) खेल चुकने के साथ-साथ वे केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं। एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की। महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा। केवल देश में में ही नहीं, समुद्र पार भी उन्होंने मानव-स्वतन्त्रता और महिला-हितों के अनुष्ठानों में अपनी बौद्धिक आहुति दी। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने तो उन्हें वहाँ के स्वाधीनता संग्राम में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अपना समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया।

मारग्रेट अल्वा ने चढ़ती वय में ही एक एडवोकेट के रूप में विशिष्ट पहचान बनाली थी। सुखद आश्चर्य तो यह है कि कानूनी लड़ाई के पेशे में रहते हुए उन्होंने तैल चित्र बनाने जैसी ललितकला में और गृह-सज्जा के क्षेत्र में भी हस्तक्षेप किया। वे अपनी सुरूचि पूर्ण जीवन शैली और सौन्दर्य बोध के लिए भी सुपरिचित रही हैं।

मंगलोर में 70 वर्ष पूर्व जन्मी मारग्रेट असाधारण रूप से साहसी और बौद्धिक दृष्टि से प्रखर धारदार रही हैं। नवम्बर सन् 2008 में उन्होंने जब अपनी पार्टी पर ही कांग्रेस सीटों के लिए टिकिटों के क्रय-विक्रय का आरोप लगाया, तो उन्हें अपनी स्पष्टवादिता की भारी कीमत चुकानी पड़ी और कांग्रेस पार्टी की जनरल सैक्रेट्री के पद से तथा सैन्ट्रल इलैक्शन कमेटी और महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा तथा मिजोरम राज्यों के लिए कांग्रेस पार्टी की इन्चार्ज होने के पद से भी मुक्त होना पड़ा। वे संसद की अनेक समितियों में रहने के साथ-साथ राज्य सभा के सभापति के पैनल में भी रहीं। संक्षेप में, मारग्रेट अल्वा देश की एक ऐसी अग्रणी जन-नेता रही, जिनका बहुआयामी योगदान स्वतन्त्र भारत के इतिहास में विशिष्ट सम्मान के साथ रेखांकित किया जायेगा।

राज्यपालों की भूमिका आज के राजनीतिक परिवेश और विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण हो गई हैं। आशा की जानी चाहिए कि अपने सुदीर्घ, परिपक्व और बहुआयामी अनुभव से वे राजस्थान के राजभवन को एक नूतन भंगिमा और गरिमा प्रदान करेंगी।

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