गुरुवार, 10 मई 2012

परमाणु वैज्ञानिक काकोड़कर की जयपुर यात्रा



राज्य की राजधानी जयपुर में विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और विशिष्ट कोटि के विद्यालयों की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, इस गति से यहाँ अकादमिक गतिविधियाँ और उनमें भाग लेने के लिए आने वाले राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वानों के आवागमन की संख्या भी बढ़ रही है। कदाचित् कोई माह ही ऐसा जाता होगा, जब यहाँ ख्यातनाम विद्वान्, वैज्ञानिक और समाज विज्ञानी अपने व्याख्यानों से ज्ञान-पिपासुओं को तृप्त न करते हों। पर खेद जनक स्थिति यह है कि जहाँ राज्य शासन औसत दर्जे के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले तथाकथित विशिष्टजनों को राजकीय अतिथि बनाता रहता है और उसका प्रोटोकोल विभाग उन्हें निर्धारित प्रावधानों के अनुसार शासकीय शिष्टाचार से सराबोर कर देता है, वहाँ देश के रक्षा तन्त्र से जुड़े शिखर वैज्ञानिक उसकी दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। इसका एक ताजा उदाहरण एटोमिक इनर्जी कमीशन के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में सौर ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा आयोग के सदस्य डॉ अनिल काकोड़कर की जयपुर-यात्रा है। एक वैज्ञानिक के रूप में काकोड़कर की जो उपलब्धियाँ हैं, उनका अनुमान इसी से किया जा सकता है कि वे पद्म  विभूषण अलंकरण से सम्मानित हो चुके हैं और देश-विदेशों के अनेक शीर्ष कोटि के विश्वविद्यालय उन्हें मानद डी.एस-सी. की उपाधि से विभूषित कर चुके हैं। वे निहायत सरल प्रकृति के व्यक्ति हैं और ‘विद्या ददाति विनयम्’की उक्ति को साक्षात् चरितार्थ करते हैं। इसीलिए उन्होंने सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की उस उपेक्षा का भी कोई ख्याल नहीं किया, जो गत एक मई को उनके साथ हुई। काकोड़कर जयपुर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में उसके संस्थापक द्वारा अपने दिवंगत पुत्र की स्मृति में प्रायोजित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण सोसाइटी द्वारा संचालित विज्ञान-संचार पुरस्कार जिसकी राशि एक लाख रूपये है, ग्रहण करने आये थे।

भारत सरकार के आदेशानुसार काकोड़कर जैड श्रेणी की सुरक्षा के अधिकारी हैं, जो उन्हें अनिवार्यतः राज्य सरकार को उनके प्रवास के दौरान उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी। प्रोटोकोल सुविधाएं तो वैसे भी उन्हें देय थी। किन्तु ऐसा कुछ नहीं किया गया। आश्चर्य तो यह है कि चार दिन पूर्व केन्द्र सरकार के मुंबई स्थित परमाणु ऊर्जा विभाग के उपशासन सचिव द्वारा राज्य के मुख्य सचिव को फैक्स द्वारा न केवल काकोड़कर का पूरा कार्यक्रम भेजा गया था, अपितु यह स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया था कि काकोड़कर को पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और प्रोटोकोल सुविधाएं उपलब्ध कराई जायें। जैसा कि हर त्रुटि के समय होता है, जो भूल होती है, उसे एक दूसरे पर डालने की कोशिश की जाती है। यह सचमुच चिन्ताजनक है कि यह अप्रिय घटना मुख्य सचिव सी.के. मैथ्यू के कार्यकाल के दौरान हुई। मैथ्यू स्वयं बड़े विद्यानुरागी और श्रेष्ठ उपन्यास लेखक हैं।

इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि गत वर्ष सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. यशपाल जब यही दीपक राठौड़ स्मृति विज्ञान-संचार सम्मान लेने और बाद में द्वारकानिधि ट्रस्ट का प्रज्ञा पुरस्कार लेने और व्याख्यान देने आये थे, तो प्राप्त सूचनाओं के अनुसार उन्हें भी ये सुविधाएं कदाचित् नहीं दी गई थीं। पर काकोड़कर की यात्रा तो इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी कि उन्होंने इस अवसर पर भारत विज्ञान कांग्रेस के अनुकरण में गठित राजस्थान विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की घोषणा भी की थी। काकोड़कर ने अपने व्याख्यान में भारत की ऊर्जा समस्या के समाधान के लिए अणु ऊर्जा और सौर-ऊर्जा दोनों के विकास के लिए भारत की परिस्थितियों के अनुरूप तकनीक के क्षिप्रगामी विकास की आवश्यकता प्रतिपादित की थी।

यह वांछनीय होगा कि डॉ अनिल काकोड़कर को सुरक्षा-व्यवस्था और प्रोटोकोल सुविधाएं मुहैया कराने में जो चूक हुई है, उसके लिए राज्य प्रशासन राजस्थान की गौरवमयी अतिथि-परम्परा के अनुसार क्षमा-याचना करे।



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