बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

जयपुर आकाशवाणी की पुरानी यादें और कोड़ाराम की चाय


आकाशवाणी से मेरा रिश्ता  लगभग 68 साल पुराना हो चुका है। मेरा पहला प्रसारण दिल्ली से हुआ था,  जिसे ‘’चित्रलेखा’  के ख्यातनाम लेखक भगवती चरण वर्मा ने रैकर्ड किया था। यह भी एक सुखद संयोग ही था कि 1955 में जब आकाशवाणी के जयपुर केन्द्र का उद्घाटन राजस्थान के राज प्रमुख सवाई मान सिंह ने किया था,  तो उसका श्रीगणेश  राजस्थान की प्रशस्ति में लिखे गए मेरे गीत से ही हुआ था। उसके बाद तो इस केन्द्र से निरन्तर बड़ा आत्मीयतापूर्ण जुड़ाव रहा। जयपुर केन्द्र की जब स्वर्ण जयन्ती निदेशक धर्मपाल के कार्यकाल में मनाई गई,  तो मुझे अन्य विद्वानों और कलाकारों के साथ सम्मानित भी किया गया। बहरहाल।

पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे याद आते हैं वे कद्दावर लोग,  जिन्होंने जयपुर केन्द्र को बड़ी हैसियत दी थी। केन्द्र के सबसे पहले प्रभारी सहायक निदेशक सत्य प्रकाश  कौशल थे। उन्हीं की देख-रेख में केन्द्र का भव्य उद्घाटन हुआ था। वे जल्दी ही स्थानान्तरित हो कर पूना चले गए, जहां उनका आकस्मिक निधन हो गया। उनके जाने के बाद एक और सहायक निदेशक आए डॉ  समर बहादुर सिंह, जिन्होंने रहीम पर बड़ी महत्वपूर्ण गवेषणा की थी। समर बहादुर सिंह तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री राम सुभग सिंह के दामाद थे। उनके बाद निदेशक स्तर के अधिकारियों ने केन्द्र को सम्भाला,  जिनमें रोमेश  चंद्र,  प्रताप कृष्ण और गोपाल दास जी तो अपनी कार्यशैली और विद्वत्ता के लिए इतने विख्यात हुए कि उनके नाम आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। रोमेश  चंद्र अपने प्रशासनिक कौशल,  उच्च स्तरीय जन सम्पर्क और लेखकों से सक्रिय संवाद के लिए सुपरिचित रहे,  तो गोपाल दास जी एक श्रेष्ठ लेखक और आकाशवाणी केन्द्र संचालन में दीर्घ अनुभव के धनी थे। जयपुर के बुद्धिजीवियों के बीच वे बड़े लोकप्रिय हुए और सेवा निवृत्ति पर यहीं बस गए। कोई लगभग 92 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। हिन्दी की विख्यात् लेखिका रजनी पनिकर भी इस केन्द्र की निदेशक रहीं,  किन्तु अपने कड़े अनुशासन के कारण वे थोड़ी विवादास्पद हो गईं थीं। यहां से स्थानान्तरित हो कर वे आकाशवाणी कलकत्ता जैसे बड़े केन्द्र की निदेशक बनीं।

दूसरी पंक्ति में जिन अनुभवी और प्रतिभावान् लोगों ने जयपुर केन्द्र के कार्यक्रमों को सुदूर तक चर्चित बनाया,  उनमें हिन्दी के प्रख्यात आलोचक रहे ललिता प्रसाद सुकुल के भतीजे गंगाधर शुक्ल,  ब्रह्म स्वरूप बहल,  गंगा प्रसाद माथुर,  एन. आर. टंडन,  मिस्टर विकर्स और लक्ष्मण टंडन के नाम विशेष  रूप से उल्लेखनीय हैं। गंगाधर शुक्ल तो इस समय 94 वर्ष के हैं और कुछ समय पूर्व ही उन्होंने अपनी एक पुस्तक ‘’वक्त गुज़रता है’  भेजी थी,  जिसमें जयपुर की यादें बड़ी खूबसूरती से संजोयी गई हैं। लक्ष्मण टंडन सेंट स्टीफन्स के प्रोडक्ट थे और वे कुछ समय बाद प्रसिद्ध पत्रकार अपने मित्र चंचल सरकार के आग्रह पर प्रेस इंस्टीट्यूट में ओ.एस.डी. होकर चले गए थे,  जहां से वे फिर टाइम्स ऑव  इंडिया में मैनेजर (डिवलपमेन्ट) हो गए। लक्ष्मण टंडन,  जिन्हें मित्र लोग प्यार से लच्छी कहते थे,  वे दूरदर्शन पर प्रश्न  मंच शीर्षक एक बड़ा श्रेष्ठ कार्यक्रम करते थे। इस कार्यक्रम से उनकी ख्याति और लोक प्रियता में बहुत विस्तार हुआ। मिस्टर विकर्स भी अपनी ड्यूटी के बड़े पाबंद थे। उनकी बड़ी पुत्री पैट्रीशिया तो विख्यात सर्जन हैं और एक अन्य पुत्री मोनिका राजस्थान पर्यटन निगम में वरिष्ठ अधिकारी हैं। यह परिवार जयपुर में ही बस गया था।

हिन्दी प्रोड्यूसर्स में भी इस केन्द्र पर कितने कद्दावर साहित्यकार आए, इसका अनुमान बहुत कम लोगों को है। उदयशंकर भट्ट, राज नारायण बिसारिया,  गोपाल कृष्ण कौल जैसी हस्तियां कार्यक्रमों को एक नई भंगिमा प्रदान करते थे।

संगीतकारों में विनायक राम चंद्र आठावले, जवाहर लाल मट्टू,  म्यूज़िक कम्पोज़र्स में राम सिंह और अन्य कई श्रेष्ठ संगीतकार थे। तबला वादक दायम अली का नाम भुलाए नहीं भूलता। कलाकारों में सर्व श्री नन्द लाल शर्मा,  ओम शिवपुरी,  असरानी,  मदन शर्मा और महिला कलाकारों में सुधा शर्मा कमला केसवानी,  कला हज़ारे,  माया इसरानी आदि अनेक नामचीन प्रतिभाएं स्टाफ पर थीं। लोक कलाकारों में गणपत लाल डांगी का कोई सानी नहीं था। भारत-चीन युद्ध के समय उनका कार्यक्रम ‘’लड़ै सूरमा आज जी’  बेहद लोक प्रिय हुआ। कितने ही नाम हैं,  जो अब स्मृतियों से ओझल हो चुके हैं। फिर भी आमेर के राज महलों में ओ.बी. वैन के सहारे आयोजित भव्य बिहारी उत्सव और आकाशवाणी के लॉन्स  पर आयोजित बीसियों अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों की अनुगूंज अवश्य  जयपुर आकाशवाणी के रसिक श्रोताओं की स्मृतियों में रमी होगी। परिसर में स्थित सिन्धी कोड़ा राम की कड़क चाय और उनके द्वारा आर्मी से ला कर सुलभ कराने वाली थ्री एक्स रम की यादें उन दिनों यहां रहे और कहीं भी बसे हों,  जयपुर आकाशवाणी कर्मियों के जेह्न  में अब भी मंडराती होंगी।


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