शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

दुखान्तिका एक आई. पी. एस. अफसर की


यादें उस कालखंड की हैं,  जब कुंभाराम आर्य राज्य के गृह और स्वास्थ्य मंत्री थे। कदाचित् वर्ष 1957 का घटना-चक्र रहा होगा। कुंभाराम आर्य बिना किसी औपचारिक शिक्षा के भी किस प्रकार प्रखर बुद्धि-वैभव के धनी थे,  इसका आस्वाद मैंने सरकारी पत्रावलियों पर दी गई उनकी उन तीखी टिप्पणियों से किया था,  जो मुझे दिवंगत आई.ए.एस. अधिकारी बाला सहाय शर्मा के सौजन्य से सुलभ हुआ था। बाला सहाय जी दौसा के रहने वाले थे,  जहाँ मेरा ननिहाल था और मुझे यह सौभाग्य भी प्राप्त था कि मैंने हाईस्कूल में उनके पिता वृद्धिचन्द शर्मा से अंग्रेजी विषय पढ़ा था। बाला सहाय शर्मा के पुत्र गोपाल शर्मा अभी हाल तक जम्मू-कश्मीर शासन में डी.जी. (पुलिस) थे।

कुंभाराम आर्य की राजनीतिक सूझबूझ और उनकी पर दुःख-कातरता के अनेक किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है। उन्हीं के एक परम मित्र और परामर्शदाता थे ‘’बादळी’ और ‘’लू’ जैसी श्रेष्ठ राजस्थानी काव्य-कृतियों के रचयिता चन्द्रसिंह। चन्द्रसिंह जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत कैंडे की हुई थी। वे पहले सादूल पब्लिक स्कूल में और फिर बनारस विश्वविद्यालय में पढ़े थे। जिन दिनों कुंभाराम जी अपनी राजनीतिक शक्ति के शिखर पर थे,  चन्द्रसिंह जी अपने गाँव बिरकाळी को छोड़कर जयपुर आ गये थे। बिरकाळी तब गंगानगर जिले में और अब हनुमानगढ़ जिले में है। खासा कोठी के 18 और 19 नम्बर के दो कमरे चन्द्रसिंह जी के राजधानी-निवास के लिए सुरक्षित कर दिये गये थे। जैसे ही शाम होती,  अठारह नम्बर के कमरे में सरकार के कुछ चुने हुए आला अफसरों और काव्य-प्रेमियों की महफिल सजने लगती। इस मंडली का मैं सबसे कम आयु का सदस्य था। स्मृतियों के सहारे कहना चाहूँगा कि इस महफिल में पुलिस अधिकारियों में डी.आई.जी. जसवन्त सिंह,  जो राजस्थान के गठन के फलस्वरूप बीकानेर यूनिट से आये थे,  प्रमुख थे। दूसरे एक युवा आई.पी.एस. अधिकारी एस.पी. (सी.आई.डी.) जगन्नाथन थे। कुछ वरिष्ठ डॉक्टर भी नियमित आने वालों में थे,  क्योंकि कुंभाराम जी के पास स्वास्थ्य विभाग भी था। इस महफिल में मदिरा के चषकों के साथ बौद्धिक चर्चाएं बड़ी लम्बी चलतीं और कोई आधी रात के समय महफिल बिखरती। कदाचित् इस मेल-मिलाप का ही सुफल था कि डी.आई.जी. जसवन्त सिंह जी के बड़े भ्राता कर्नल फतहसिंह जी की सुपुत्री का विवाह विख्यात् कलाकार कृपाल सिंह शेखावत से सम्पन्न हुआ,  जो उन दिनों चित्रकला का अध्ययन करके जापान से लौटे ही थे। मुझे छोड़कर सब लोग कारों में आते थे,  पर मुझे भी प्रायः जसवन्त सिंह जी अपनी हरे रंग की एम्बेसेडर आर.जे.एल. 1000 में मेरे बापू नगर स्थित नन्हें से निवास पर छोड़ देते। जसवन्त सिंह जी सड़क के उस पार लगभग मेरे सामने की दिशा में एक बड़े बंगले में रहते थे,  जहाँ आजकल एक हाईकोर्ट जज रहते हैं।

यह भूमिका आई.पी.एस. अधिकारी जगन्नाथन की दुःखान्तिका को समझने के लिए जरूरी थी। जगन्नाथन नाटे कद के दाक्षिणात्य मूल के सांवले रंग के व्यक्ति थे। वे जब खासा कोठी में चन्द्रसिंह जी की महफिल में प्रवेश करते, तो पूरी तरह मदिरा के नशे में धुत होते और उनके साथ अनिवार्यतः एक सारंगी वादक होता,  जो राजस्थान की लोकधुनें बजाकर उनका मनोरंजन करता था। शराब के नशे में वे जिस कदर चूर रहते थे,  उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं रह गया था कि उनकी यह मयखोरी एक दिन उनके लिए आत्मघाती सिद्ध होगी। जगन्नाथन किसी भी अर्थ में ऐयाश व्यक्ति नहीं थे, पर मदिरा की मस्ती में कभी-कभी चाँदपोल बाजार की संगीत-नृत्य प्रवीणा गणिकाओं के यहाँ भी चक्कर काट लेते थे। उन दिनों चाँदपोल बाजार में रात होते ही रसिकगण मुजरा सुनने अपनी प्रिय गणिकाओं के आनन्द-गृहों की सीढ़ियाँ चढ़ने लगते थे। रामगंज तो रैड लाइट एरिया के रूप में पूरे भारत में ही बदनाम था। बहरहाल! एक दिन जगन्नाथन भी चाँदपोल बाजार की एक गणिका को झूमते हुए अपने साथ कार में बैठाकर ले आये और पहुँच गये सीधे पहली चौपड़ स्थित कोतवाली पर,  जहाँ कोतवाल रात की ड्यूटी पर था। जगन्नाथन को देखकर वह सकपका कर अपनी कुर्सी से उठकर सैल्यूट कर ही रहा था कि जगन्नाथन साहब ने आदेश दे दिया कि वह अपनी कुर्सी छोड़ दे और उस पर उस गणिका को बैठा दे। कोतवाल बड़ा सख्त और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था। इधर गणिका कुर्सी पर बैठी और उधर थानेदार ने बाहर जाकर रात के दो बजे बड़ा साहस जुटाकर आई.जी. बी.जी. कानेटकर को फोन पर इस विचित्र घटना की सूचना दी। तब पूरे राजस्थान का एक ही आई.जी. होता था और कानेटकर कोई साधारण पुलिस अफसर नहीं थे। वे आई.सी.एस. के समानान्तर आई.पी. सेवा के सदस्य थे। तब पुलिस की भारतीय सेवा का नाम आई.पी.एस. नहीं था। वे राजस्थान में आई.पी. के आखिरी इन्सपैक्टर जनरल थे। वे तुरन्त कोतवाली आये और सारा माजरा देखा। दूसरे ही दिन कानेटकर ने उन्हें केन्द्र सरकार के कार्मिक विभाग की स्वीकृति लेकर निलंबित करने की कार्यवाही शुरू कर दी। जगन्नाथन सस्पेन्ड कर दिये गये। पर अपने उच्च स्तरीय संपर्कों के कारण,  जो जाँच-कमेटी बैठाई गई,  उसकी सिफारिश पर उन्हें जल्दी ही बहाल कर दिया गया। पर कानेटकर मानने वाले नहीं थे। उन्होंने व्यक्तिशः राष्ट्रपति से मुलाकात की और संविधान के एक विशेष प्रावधान के अन्तर्गत जगन्नाथन को राष्ट्रपति के विशेष आदेश से बर्खास्त कर दिया गया। इस तरह एक युवा आई.पी.एस. अधिकारी,  जिसने अपनी प्रखर बुद्धि और कार्य कुशलता के लिए जल्दी ही अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी,  अपने ही दुर्व्यसनों  से अपने कैरियर का सत्यानाश कर लिया। आगे की उनकी कष्ट-कथा आंखों को नम कर देने वाली है।

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