वैसे तो राज्य सरकार के आदेश हैं कि जिस दिन भी राज्य कर्मचारी सेवा-निवृत्त हो, उसकी पेन्शन, ग्रेच्युटी, लीव-एनकैशमैन्ट आदि के सारे कागजात उसी दिन डिलीवर कर दिये जाने चाहिए, किन्तु यह तथ्य भी छिपा नहीं है कि अनेकानेक कारणों से उनकी इन प्राप्तियों में अडंगे लगते रहते हैं और पीड़ित व्यक्तियों को न्यायालयों की शरण भी लेनी पड़ती है। बहरहाल!
समस्यायें गौर तलब उन पेन्शनर्स की हैं, जो सत्तर के पार पहुँच चुके हैं। उनमें 75 से लेकर 80-85 और 90-95 तक की आयु के पेन्शनर्स हैं, जो शारीरिक रूप से नितान्त असमर्थ हो चुके हैं। इनमें अच्छी खासी संख्या पारिवारिक पेन्शन प्राप्त करने वाली विधवाओं की है। इस आयु वर्ग के पेन्शनर्स को अपनी पेन्शन प्राप्त करने में कितनी कठिनाइयाँ होती हैं, इसका अनुमान कदाचित् राज्य के पेन्शन विभाग को भी नहीं है। किस प्रकार पहली तारीख को या इसके बाद ये बुजुर्ग पेन्शनर्स बसों में धक्के खाते हुए विभिन्न बैंकों तथा पेन्शन डिस्बर्समैन्ट केन्द्रों तक पहुँचते हैं, इस पीड़ा को मुक्त भोगी लोग ही जानते हैं। इतनी अधिक आयु के पेन्शनर्स में कुछ तो हतने अशक्त हैं कि उनसे चला भी नहीं जाता। बड़ी उम्र के इन लोगों में अधिकांशतः किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं। उनके हाथों की अँगुलियाँ काँपने लगती हैं। बैंक में स्पेसीमैन सिग्नेचर नहीं मिलते, तो दिक्कत होती है, बार-बार हस्ताक्षर कराये जाते हैं। पेन्शन राशि लेने की प्रक्रिया में ही दिन पूरा हो जाता है।
वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण का जो कानून राज्य में लागू हुआ है, उसके नियमों में यह भी प्रावधान है कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए गरिमापूर्ण और सुविधापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट नियमों में प्रावधित कर्तव्यों के अतिरिक्त और भी बिन्दु जोड़ सकते हैं। ऐसे में क्या यह व्यवस्था नहीं की जा सकती कि हर जिले में ऐसा तन्त्र विकसित किया जाय, जिसके माध्यम से 70 से लेकर ऊपर की अधिकतम आयु के पेन्शनर्स की पेन्शन उनके निवास पर ही भुगतान कर दी जाये। सरकार को इसके लिए कोई तन्त्र विकसित करने के लिए अतिरिक्त कार्मिक व्यवस्था करने की आवश्यकता भी नहीं होगी। सरकार के कितने ही विभाग ऐसे हैं, जिनमें आवश्यकता से अधिक कर्मचारी हैं और वे अधिकांश समय में मस्ती ही मारते रहते हैं। ऐसे कर्मचारियों को उन विभागों से लेकर लेखा सेवा के किसी अधिकारी के अधीन इस सेवा-कार्य में लगाया जा सकता है।
60 से 65 वर्ष की आयु तक के कुछ पेन्शनर्स को भी तर्कसम्मत पारिश्रमिक देकर उनकी सेवाओं का उपयोग इस कार्य के लिए किया जा सकता है। नगर निगम के अन्तर्गत जितने जोन्स हैं, उन्हें ध्यान में रखकर प्रत्येक जोन के लिए ऐसे पेन्शन-वितरक तैनात किये जा सकते हैं। इस प्रकृति की व्यवस्था में किसी तरह की त्रुटि, विलम्ब, या भ्रष्टाचरण न हो, इसके लिए ‘इन बिल्ट सेफ गार्ड’ सावधानीपूर्वक रखे जा सकते हैं। आशा की जानी चाहिए कि राज्य का वित्त विभाग पूरी संवेदनशीलता के साथ ऐसे किसी तन्त्र को स्थापित करने की पहल करेगा।
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