पत्रकारिता के इतिहास में गहरी दिलचस्पी के कारण पुराने समाचार पत्रों की तलाश करते रहना मेरा व्यसन रहा है। अपनी इसी खोज के सिलसिले में मेरी मुलाकात अचानक कोई तीस साल पहले श्री प्रियतम कामदार से हो गई। कामदार उन उत्कट विद्यानुरागियों में थे जो सुदूर सन् 1928 में भी प्रसिद्ध प्रकाशक डी.बी. तारापुरवाला से अंग्रेजी के ग्रन्थ मंगाकर पढ़ते थे। सन् 1942 में कामदार ने अन्य पत्रों के अलावा ‘’प्रचार’ नाम से एक ऐसे तेजस्वी साप्ताहिक का प्रकाशन किया था, जिसके सामाजिक और राजनीतिक सरोकार सघन और गहरे थे। सन् 1945 में जब प्रजामंडल की मांगों के फलस्वरूप जयपुर रियासत में उत्तरदायी शासन की मांग उठने लगी, तो सर मिर्जा इस्माइल के जमाने में धारा सभा और प्रतिनिधि सभा की स्थापना की गई और इसके लिये चुनाव कराये गये। एक सीमित दायरे में ही सही, जयपुरवासियों का चुनावों की प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया से गुजरने का यह पहला अनुभव था। इसलिए प्रबुद्ध पत्रकार प्रियतम कामदार ने अपने समाचार पत्र के जरिये लोक-शिक्षण का बीड़ा उठाया और अपने पत्र में तरह-तरह के मनोरंजक विज्ञापन, कविताएं, लेख और टिप्पणियां प्रकाशित कीं, ताकि जन सामान्य चुनाव-प्रचारकों की चिकनी-चुपड़ी बातों और मीठे वादों के भुलावे में न आयें और योग्य उम्मीदवारों को ही विजयी बनायें। यहां मैं उन विज्ञापनों को उद्धृत करने का मोह संवरण नहीं कर सकता, जो कामदार जी ने आज से लगभग सात दशक पूर्व प्रकाशित किये थे।
जयपुर में नृसिंह चतुर्दशी का जुलूस बड़ी धूम-धाम से निकलता है। इसकी तैयारियां भी बड़े जोर शोर से होती हैं। नृसिंह के विभिन्न अवतारों के मुखौटे लगाये लोगों की यह शोभायात्रा दर्शनीय होती है। इसी शोभायात्रा की उपमा देते हुए चुनाव-चेतना का एक विज्ञापन जयपुरी बोली में इस प्रकार छापा गया थाः
‘चुनाव ‘चतरदशी’ आ गई छै
रंग विरंग्या चेहरा लेर
चैरावां चैरावां चक्कर लगाता हुयां
लोग
गळी गळी में घूम रह्या छै
सावधान!
वोट की ढोक कोई नकली नरसिंगजी के
देद्योला, तो
आशीष को अस्यो हांथ माथा पर फेरेला
कि
थांका
चोटी-पट्टा साफ हो जायला
और
वांकी जटा
घेर-घुमेर हो जायली।
उन्होंने अपने समाचार पत्र में बुद्धि-कौशल से भरा एक ऐसा फार्म भी तैयार करके छापा था, जिसमें उम्मीदवारों से जयपुर की सेवा करने और कुछ विशेष मांगों को पूरा करने की प्रतिज्ञा निहित थी। इस फार्म पर उम्मीदवारों के हस्ताक्षर कराने के लिये मतदाताओं का इस प्रकार आह्वान किया गया थाः
“यदि आप चोरों के चक्रव्यूह, पापियों के पाखण्ड, हरामियों के हथकंडे, ठगों के गिरोह से अपने बहुमूल्य वोट की रक्षा करना चाहते हैं तथा अपने पवित्र वोट के बदले में अपने इष्ट मित्र, कुटुम्बियों व मूक जनता और इसके सच्चे प्रतिनिधियों के लिये इस दिन से अगले चुनावों तक कष्ट, चिन्ता और अपमान नहीं खरीदना चाहते हैं, तो आपके ‘’प्रचार’ द्वारा प्रेषित पब्लिक के हित, उन्नति और सम्मान भरे इस फार्म पर उम्मीदवार के हस्ताक्षर कराके अपना वोट दीजिये-‘
‘
मनोरंजक विज्ञापनों के साथ-साथ पत्र के ‘’चुनाव चर्चा’ शीर्षक स्तंभ में मतदाताओं को आगाह किया गया है कि वे उम्मीदवारों को मत देने से पहले निम्नलिखित बातें सुनिश्चित कर लें:
1. अमुक उम्मीदवार ने ‘’चोर बाजार’ से मूक जनता की रक्षा करने के लिये क्या-क्या किया और अब क्या करने की प्रतिज्ञा करता है।
2. अमुक उम्मीदवार ने राज्य के विभागों में बढ़ती हुई अभूतपूर्व रिश्वतखोरी से जनता की कितनी रक्षा की और अब क्या कर सकता है।
3. जनता द्वारा उठाये गये ‘’हिन्दी’ तथा ‘’वृक्ष नहीं कटेंगे’ आदि आन्दोलनों में अमुक उम्मीदवार ने क्या क्रियात्मक कार्य किये और आगे से जनमत विरूद्ध प्रश्न उपस्थित होने पर क्या कर सकेगा।
4. राज्य के उच्च स्थानों पर जयपुर वाले योग्य व्यक्ति नियुक्त किये जायें, इस जननाद को किस उम्मीदवार ने सहारा दिया और आगे इस दिशा में क्या कर सकता है।
5. बहुत ही कम वेतन पाने पर भी कम भत्ता व बहुत बड़ा वेतन पाने पर बड़ा भत्ता दिये जाने के विरूद्ध किस उम्मीदवार ने क्या प्रतिरोध किया और आगे क्या करने का वादा करता है।
6. जयपुरवासी छोटे से छोटे सरकारी नौकर को पेट भराऊ वेतन अवश्य मिलना चाहिये, इस आवाज में किस उम्मीदवार ने सहारा लगाया और भविष्य में लगाएगा क्या?
7. शहर की गलियों की बढ़ती हुई गंदगी के विषय में किन-किन उम्मीदवारों ने म्यूनिसिपैलटी व हैल्थ ऑफिस का गला पकड़ा और अब क्या वादा करते हैं।
एक साप्ताहिक द्वारा लगभग सत्तर वर्ष पूर्व चुनावों में इतनी गहरी रूचि लेकर लोक-शिक्षण की प्रभावी भूमिका निभाने का यह उपक्रम निश्चय ही प्ररेणास्पद और आज भी प्रासंगिक है।
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